प्रकृति में सभी पदार्थों का निर्माण छोटे-छोटे कणों से होता है जिन्हें हम परमाणु कहते हैं। ये परमाणु आपस में जुड़कर अणु बनाते हैं, जो किसी भी पदार्थ की पहचान निर्धारित करते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में परमाणु एवं अणु की समझ न केवल पदार्थ की संरचना को स्पष्ट करती है, बल्कि रासायनिक प्रतिक्रियाओं, ऊर्जा उत्पादन एवं जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को भी उजागर करती है।

इस अध्याय में हम परमाणु एवं अणु के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिनमें उनके इतिहास, विभिन्न मॉडलों, उपखंडों और रासायनिक बंध शामिल हैं।
परमाणु क्या है?
परमाणु (Atom) वह सबसे छोटा कण है जो किसी तत्व के रासायनिक गुणों को रखता है। जब तक किसी परमाणु के भीतर कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं किया जाता, तब तक यह अपरिवर्तनीय रहता है।
उदाहरण: सोना, चांदी, और तांबा – इन सभी तत्वों के परमाणु अपनी अलग पहचान रखते हैं।
परमाणु का इतिहास
परमाणु का विचार प्राचीन काल से ही मौजूद था। भारतीय और यूनानी दार्शनिकों ने भी पदार्थ के अणुओं के बारे में विचार प्रकट किए थे। बाद में 19वीं सदी के अंत में वैज्ञानिक डॉ. जॉन डाल्टन ने परमाणु सिद्धांत को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया। डाल्टन ने बताया कि:
- प्रत्येक तत्व के परमाणु समान होते हैं।
- विभिन्न तत्वों के परमाणु एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।
- रासायनिक प्रतिक्रियाओं में परमाणु के पुनर्गठन से नए यौगिक बनते हैं।
परमाणु की संरचना का विकास
20वीं सदी में रसेफर्ड, बोहर और अन्य वैज्ञानिकों ने परमाणु के अंदरूनी भागों की खोज की। इन शोधों के आधार पर आज हम जानते हैं कि परमाणु में मुख्यतः तीन प्रकार के कण होते हैं:
- इलेक्ट्रॉन (Electron): यह नकारात्मक चार्ज वाला कण है जो परमाणु के बाहरी आवरण में घूर्णन करता है।
- प्रोटॉन (Proton): यह धनात्मक चार्ज वाला कण है और परमाणु के केंद्र (नाभिक) में स्थित होता है।
- न्यूट्रॉन (Neutron): यह कण न्यूट्रॉन का कोई चार्ज नहीं होता, परंतु इसका द्रव्यमान प्रोटॉन के समान होता है और यह भी नाभिक में पाया जाता है।
अणु क्या है?
अणु (Molecule) दो या दो से अधिक परमाणुओं का संयोजन होता है जो रासायनिक बंधों द्वारा जुड़े होते हैं। अणु ही किसी भी रासायनिक यौगिक का मूलभूत कण होता है।
उदाहरण: जल (H₂O) अणु में दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु जुड़कर एक अणु बनाते हैं।
अणुओं के प्रकार
अणु के प्रकार उनके रासायनिक बंधों और संरचना के आधार पर अलग-अलग होते हैं:
- एकल अणु (Monoatomic): कुछ तत्व, जैसे निबल गैसें, केवल एक परमाणु के रूप में मौजूद होते हैं।
- द्वि-अणु (Diatomic): हाइड्रोजन (H₂), नाइट्रोजन (N₂) और ऑक्सीजन (O₂) जैसे गैसें दो परमाणुओं के समूह से मिलकर बनी होती हैं।
- बहु-अणु (Polyatomic): जल, अम्ल, शर्करा आदि अणु कई परमाणुओं का समुच्चय होते हैं।
अणुओं का महत्त्व
अणु पदार्थ के भौतिक और रासायनिक गुणों को परिभाषित करते हैं। प्रत्येक अणु की संरचना उसके गुणों में विशेष भूमिका निभाती है।
उदाहरण: जल अणु का आकार और बंध संरचना ही इसे तरल रूप में रखने में सहायक होती है।
परमाणु संरचना एवं उपखंड
नाभिकीय संरचना
परमाणु का केंद्र या नाभिक अत्यंत छोटा होता है, परंतु इसमें लगभग सम्पूर्ण द्रव्यमान निहित होता है। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन मौजूद होते हैं, जिनका कार्य परमाणु के द्रव्यमान को नियंत्रित करना है।
- प्रोटॉन: ये धनात्मक चार्ज के साथ नाभिक में स्थित होते हैं। किसी तत्व के परमाणु में प्रोटॉन की संख्या ही उस तत्व का परमाणु क्रमांक (Atomic Number) निर्धारित करती है।
- न्यूट्रॉन: प्रोटॉन के साथ मिलकर नाभिक के द्रव्यमान में योगदान देते हैं। न्यूट्रॉन की संख्या में परिवर्तन होने से विभिन्न समस्थानिक (Isotopes) उत्पन्न होते हैं।
इलेक्ट्रॉन संरचना
इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर कक्षाओं (Shells) में स्थित होते हैं। इन कक्षाओं की ऊर्जा स्तर अलग-अलग होती है। इलेक्ट्रॉन की व्यवस्था के आधार पर ही रासायनिक बंध और यौगिकों के गुण निर्धारित होते हैं।
- ऊर्जा स्तर: पहला ऊर्जा स्तर सबसे निकट होता है और इसमें अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन आ सकते हैं। दूसरे और तीसरे स्तर में अधिक इलेक्ट्रॉन समाहित हो सकते हैं।
- इलेक्ट्रॉन की कक्षा: इलेक्ट्रॉन की कक्षाओं में उनकी स्थिति और दूरी नाभिक से तय करती है कि परमाणु किस प्रकार के रासायनिक बंध में संलग्न होगा।
परमाणु मॉडल
परमाणु के इतिहास में कई वैज्ञानिकों ने विभिन्न मॉडल प्रस्तावित किए:
- डाल्टन का परमाणु मॉडल: डाल्टन ने माना कि परमाणु अटूट होते हैं और किसी रासायनिक प्रतिक्रिया में वे पुनर्गठित हो जाते हैं।
- रोथरफोर्ड मॉडल: रसेफर्ड के प्रयोगों से पता चला कि परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान नाभिक में केंद्रित होता है, जबकि इलेक्ट्रॉन उसके चारों ओर घूमते हैं।
- बोहर मॉडल: बोहर ने इलेक्ट्रॉन की निश्चित कक्षाओं में व्यवस्था को समझाया और ऊर्जा के स्तरों की व्याख्या की। उन्होंने यह भी बताया कि जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा कक्षा से निम्न ऊर्जा कक्षा में जाते हैं, तो ऊर्जा उत्सर्जित होती है।
परमाणु एवं अणु के रासायनिक बंध
रासायनिक बंधों की परिभाषा
रासायनिक बंध दो या दो से अधिक परमाणुओं को आपस में जोड़ने वाला वह बल होता है, जो उन्हें एक स्थिर अणु या यौगिक बनाता है। रासायनिक बंध मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:
- आयनिक बंध (Ionic Bond): इसमें एक परमाणु अपने इलेक्ट्रॉन दूसरे परमाणु को हस्तांतरित कर देता है, जिससे दोनों परमाणु परस्पर आकर्षित हो जाते हैं।
उदाहरण: सोडियम क्लोराइड (NaCl)। - सहसंयोजी बंध (Covalent Bond): इसमें परमाणु अपने इलेक्ट्रॉनों को साझा करते हैं।
उदाहरण: जल (H₂O)। - धात्विक बंध (Metallic Bond): इसमें धातु के परमाणु अपने बाह्य इलेक्ट्रॉनों को मुक्त छोड़ देते हैं, जिससे एक ‘इलेक्ट्रॉन समुद्र’ बनता है जो सभी परमाणुओं को बाँधता है।
बंध की शक्ति और गुण
रासायनिक बंधों की ताकत पदार्थ की भौतिक गुणों को प्रभावित करती है:
- घनत्व और उबाल बिंदु: मजबूत बंध वाले पदार्थों में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे उनका उबाल बिंदु ऊँचा होता है।
- कठोरता एवं लचीलेपन: धात्विक बंधों में इलेक्ट्रॉन का मुक्त प्रवाह पदार्थ को लचीला बनाता है, जबकि सहसंयोजी बंध कठोर संरचनाएँ प्रदान करते हैं।
- विद्युत चालकता: धात्विक बंध विद्युत चालकता में सहायक होते हैं क्योंकि मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत प्रवाह को सुगम बनाते हैं।
परमाणु एवं अणु के व्यवहार के नियम
रासायनिक सूत्र एवं अणु संख्याएँ
प्रत्येक यौगिक को उसके परमाणु और अणुओं की संख्या के आधार पर एक सूत्र दिया जाता है।
- मोल सिद्धांत: मोल एक मात्रात्मक इकाई है जिससे किसी पदार्थ में उपस्थित परमाणुओं की संख्या को मापा जाता है।
- अवोगाद्रो का नियम: यह नियम बताता है कि समान तापमान और दबाव पर सभी गैसों के बराबर आयतन में समान संख्या में कण होते हैं।
आवर्त सारणी का महत्व
परमाणु और अणुओं की संरचना एवं गुणों की समझ को और बेहतर बनाने के लिए आवर्त सारणी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- आवर्त सारणी: इसमें तत्वों को उनके परमाणु क्रमांक के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है, जिससे उनके गुणों में नियमितता देखी जा सकती है।
- सममित गुण: आवर्त सारणी में एक ही समूह के तत्व समान रासायनिक गुण प्रदर्शित करते हैं, जो उनके बाह्य इलेक्ट्रॉन की समान संरचना का परिणाम है।
रासायनिक प्रतिक्रिया में परमाणु एवं अणुओं का योगदान
रासायनिक प्रतिक्रिया तब होती है जब परमाणु और अणु आपस में क्रिया करते हैं।
- प्रतिक्रिया के प्रकार: संयोजी प्रतिक्रिया, अपघटन प्रतिक्रिया, विनिमय प्रतिक्रिया आदि।
- ऊर्जा का परिवर्तन: प्रतिक्रियाओं में ऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन होता है, जो परमाणु एवं अणुओं के पुनर्व्यवस्था पर निर्भर करता है।
प्रयोग एवं खोजों का महत्व
रसेफर्ड के प्रयोग
रसेफर्ड के सोने के पन्नी प्रयोग ने परमाणु के नाभिकीय मॉडल की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- प्रयोग की प्रक्रिया: सोने के पन्नी पर अल्फा कणों की बौछार से पता चला कि अधिकांश कण सीधे होकर निकल जाते हैं, किन्तु कुछ कण विचलित हो जाते हैं।
- निष्कर्ष: परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान एक छोटे से नाभिक में केन्द्रित है, जबकि अधिकांश जगह खाली होती है।
बोहर के प्रयोग एवं सिद्धांत
बोहर ने रासायनिक स्पेक्ट्रा के अध्ययन से यह सिद्ध किया कि इलेक्ट्रॉन निश्चित ऊर्जा स्तरों पर स्थित होते हैं।
- ऊर्जा स्तर परिवर्तन: जब इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा कक्षा से निम्न ऊर्जा कक्षा में आते हैं, तो ऊर्जा प्रकाश के रूप में उत्सर्जित होती है।
- प्रयोगों का महत्त्व: बोहर के सिद्धांत ने न केवल परमाणु संरचना को स्पष्ट किया, बल्कि अणुओं के बीच बंधों एवं रासायनिक प्रतिक्रियाओं को समझने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आधुनिक प्रयोग एवं तकनीक
आधुनिक यंत्रों जैसे इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप और परमाणु स्पेक्ट्रोस्कोपी ने परमाणु एवं अणुओं के अध्ययन को और गहन बनाया है।
- इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी: इससे परमाणु के आकार और संरचना का विश्लेषण संभव हुआ है।
- स्पेक्ट्रोस्कोपी: यह तकनीक परमाणु एवं अणुओं द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य को मापकर उनके गुणों का अध्ययन करती है।
परमाणु एवं अणु के व्यावहारिक अनुप्रयोग
चिकित्सा में उपयोग
परमाणु एवं अणुओं के अध्ययन से चिकित्सा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं:
- रेडियोधर्मिता: कैंसर के उपचार में रेडियोधर्मी यौगिकों का उपयोग किया जाता है।
- इमेजिंग तकनीक: परमाणु स्पेक्ट्रोस्कोपी के आधार पर विकसित तकनीकें शरीर के आंतरिक अंगों का चित्रण करने में सहायक होती हैं।
ऊर्जा उत्पादन
परमाणु ऊर्जा, जिसे हम आज के समय में एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं, परमाणु विभाजन की प्रक्रिया पर आधारित है।
- नाभिकीय ऊर्जा: नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों में परमाणु के विभाजन से भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है।
- सुरक्षा एवं पर्यावरण: परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित उपयोग एवं इसके पर्यावरणीय प्रभाव पर निरंतर शोध एवं सुधार किया जा रहा है।
औद्योगिक अनुप्रयोग
रासायनिक उद्योग में परमाणु एवं अणु की संरचना एवं बंधन के सिद्धांतों का उपयोग विभिन्न उत्पादों के निर्माण में किया जाता है:
- उच्च गुणवत्ता वाले यौगिक: फार्मास्यूटिकल्स, प्लास्टिक, रबर एवं अन्य रासायनिक उत्पादों के निर्माण में इन सिद्धांतों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- नई सामग्रियाँ: नैनो टेक्नोलॉजी एवं स्मार्ट मैटीरियल्स के विकास में परमाणु संरचना की गहन समझ आवश्यक है।
महत्वपूर्ण अवधारणाएँ एवं सूत्र
परमाणु क्रमांक और समस्थानिक
- परमाणु क्रमांक (Atomic Number): यह संख्या किसी परमाणु में प्रोटॉन की संख्या बताती है। इसी आधार पर तत्वों की पहचान होती है।
- समस्थानिक (Isotopes): एक ही तत्व के परमाणुओं में न्यूट्रॉन की संख्या में अंतर होने पर विभिन्न समस्थानिक उत्पन्न होते हैं।
उदाहरण: कार्बन-12 और कार्बन-14 – दोनों में प्रोटॉन समान होते हैं, लेकिन न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होती है।
अणु सूत्र
अणु सूत्र से पता चलता है कि किसी यौगिक में कौन-कौन से परमाणु कितनी संख्या में उपस्थित हैं।
- समानुपातीता: किसी यौगिक में परमाणुओं की संख्या उनके आपसी बंधों की ताकत पर निर्भर करती है।
- यौगिक की पहचान: सूत्र की मदद से किसी यौगिक के गुणों, रासायनिक व्यवहार एवं प्रतिक्रियाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
ऊर्जा स्तर एवं उत्सर्जन
- ऊर्जा अवशोषण एवं उत्सर्जन: जब इलेक्ट्रॉन ऊर्जा अवशोषित करते हैं तो वे उच्च ऊर्जा कक्षा में चले जाते हैं; और जब वे ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं तो निम्न कक्षा में लौटते हैं।
- स्पेक्ट्रल रेखाएँ: उत्सर्जित ऊर्जा तरंगदैर्ध्य के अनुसार विभाजित होती है, जिससे विभिन्न तत्वों की पहचान संभव होती है।
निष्कर्ष
परमाणु एवं अणु का अध्ययन न केवल रासायनिक सिद्धांतों को समझने का आधार है, बल्कि यह हमें प्रकृति के मूलभूत नियमों से भी अवगत कराता है। इस अध्याय में हमने देखा कि कैसे छोटे-छोटे कण मिलकर विशाल पदार्थों का निर्माण करते हैं और कैसे रासायनिक बंधों के द्वारा उनके गुण एवं व्यवहार निर्धारित होते हैं।
छात्रों के लिए यह आवश्यक है कि वे इन अवधारणाओं को समझें और नियमित अभ्यास के माध्यम से अपनी समझ को और मजबूत करें। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिक प्रयोग एवं आधुनिक तकनीकें हमें इस क्षेत्र में निरंतर प्रगति की ओर ले जाती हैं, जिससे भविष्य में और भी नई खोजें संभव हो सकें।
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