अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष – BSEB Class 8 Social Science History Chapter 6 Notes

अंग्रेजों का भारत में आगमन और शासन हमारे देश के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और संघर्षपूर्ण अध्याय है। अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जनता ने विभिन्न तरीकों से संघर्ष किया, जिससे अंततः देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इस लेख में, हम अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष का गहन अध्ययन करेंगे, जो हमें हमारी स्वतंत्रता के लिए किए गए बलिदानों की याद दिलाता है।

Class 8 Social Science History Chapter 6 Notes

BSEB Class 8 Social Science History Chapter 6 Notes-अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष

अंग्रेजी शासन की स्थापना:- भारत में अंग्रेजी शासन की शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के उद्देश्य से भारत में अपने कदम रखे। धीरे-धीरे, कंपनी ने भारतीय रियासतों और शासकों के साथ संधियों और युद्धों के माध्यम से अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाना शुरू किया। प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाइयों के बाद, अंग्रेजों ने भारत के बड़े हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।

अंग्रेजी शासन के खिलाफ प्रारंभिक संघर्ष:- अंग्रेजों के अत्याचारी और शोषणकारी नीतियों के खिलाफ भारतीय समाज में असंतोष की भावना बढ़ने लगी। विभिन्न क्षेत्रों में प्रारंभिक संघर्षों की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर एक बड़े स्वतंत्रता संग्राम का आधार बने।

  • संन्यासी विद्रोह (1763-1800): बंगाल के संन्यासियों और किसानों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह किया। इस विद्रोह का नेतृत्व साधुओं और फकीरों ने किया, जो अंग्रेजों के अत्याचारों से त्रस्त थे।
  • पायका विद्रोह (1817): ओडिशा के पायकाओं ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह किया। पायका ओडिशा की पारंपरिक सेना थी, जो अंग्रेजों के शोषण और अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़ी हुई।
  • पिंदारी विद्रोह (1817-1818): मध्य भारत में पिंदारियों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह किया। पिंदारी एक लड़ाकू समुदाय था, जो मराठा सेना का हिस्सा थे, लेकिन अंग्रेजों के आगमन के बाद बेरोजगार हो गए थे।

1857 का विद्रोह: स्वतंत्रता की पहली लड़ाई:- 1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक अध्याय है। इसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियां, सामाजिक और धार्मिक हस्तक्षेप, और भारतीय सैनिकों के साथ किया गया दुर्व्यवहार था।

विद्रोह के कारण: अंग्रेजों द्वारा भारतीय सैनिकों के साथ किया गया अन्यायपूर्ण व्यवहार, जैसे वेतन में कटौती और धार्मिक विश्वासों का अपमान।

  • अंग्रेजों की भूमि हड़प नीति, जिसके तहत भारतीय रियासतों का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में कर दिया गया।
  • अंग्रेजों द्वारा भारतीय समाज की परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं में हस्तक्षेप।

मुख्य विद्रोह के केंद्र:

  • मेरठ: 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोह की शुरुआत हुई, जब भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजी अफसरों के खिलाफ बगावत कर दी।
  • दिल्ली: विद्रोहियों ने दिल्ली को अपने कब्जे में ले लिया और बहादुर शाह जफर को अपना सम्राट घोषित किया।
  • लखनऊ: लखनऊ में भी विद्रोहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया।
  • कानपुर: नाना साहिब के नेतृत्व में कानपुर में विद्रोहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

विद्रोह का परिणाम: हालांकि विद्रोह को अंग्रेजों ने क्रूरता से दबा दिया, लेकिन इसने भारतीयों के मन में स्वतंत्रता की भावना को और मजबूत किया।
अंग्रेजों ने विद्रोह के बाद भारतीय प्रशासन में कई बदलाव किए और ब्रिटिश क्राउन ने ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर भारत का सीधा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।

19वीं शताब्दी में भारतीयों का संघर्ष:- 1857 के विद्रोह के बाद भी भारतीय समाज में अंग्रेजी शासन के खिलाफ असंतोष और संघर्ष की भावना जीवित रही। 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीय समाज में राजनीतिक चेतना और संगठित संघर्ष का विकास हुआ।

  • सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन: राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, और स्वामी विवेकानंद जैसे सुधारकों ने भारतीय समाज में जागरूकता फैलाई और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का मार्ग प्रशस्त किया।
    ब्रह्म समाज, आर्य समाज, और रामकृष्ण मिशन जैसे संगठनों ने भारतीयों को संगठित किया और उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ एकजुट होने के लिए प्रेरित किया।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885): 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जो आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख संगठन बना।
    कांग्रेस ने प्रारंभ में अंग्रेजों के साथ संवाद और सुधार के माध्यम से भारतीयों के अधिकारों की मांग की, लेकिन बाद में यह पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने लगा।
  • बंग-भंग आंदोलन (1905-1911): 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया, जिससे भारतीयों में गहरा असंतोष फैला।
    बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल, और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने विभाजन के खिलाफ आंदोलन चलाया और स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की।

गांधीजी का नेतृत्व और असहयोग आंदोलन:- महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक नए चरण में प्रवेश किया। गांधीजी ने सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष किया।

  • असहयोग आंदोलन (1920-1922): गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें भारतीयों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ सहयोग करने से इनकार कर दिया।
  • इस आंदोलन के तहत सरकारी नौकरी छोड़ना, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, और सरकारी संस्थानों का बहिष्कार किया गया।
  • आंदोलन के कारण अंग्रेजों की सत्ता कमजोर हुई और भारतीय समाज में एकता और संघर्ष की भावना मजबूत हुई।
  • नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930): 1930 में गांधीजी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने दांडी मार्च के माध्यम से अंग्रेजों के नमक कानून का उल्लंघन किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत भारतीयों ने अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण कानूनों का पालन करने से इनकार कर दिया।
  • भारत छोड़ो आंदोलन और स्वतंत्रता:- 1942 में गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने का आह्वान किया। इस आंदोलन के दौरान भारतीय समाज ने एकजुट होकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष किया।
  • भारत छोड़ो आंदोलन (1942): 8 अगस्त 1942 को गांधीजी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया।
    इस आंदोलन में भारतीयों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया।
    आंदोलन के दौरान कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन भारतीयों की स्वतंत्रता की भावना कमजोर नहीं हुई।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति (1947): भारत छोड़ो आंदोलन के बाद, अंग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया।
    15 अगस्त 1947 को भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त की और एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।

निष्कर्ष

अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और गर्वपूर्ण अध्याय है। भारतीयों ने अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए विभिन्न तरीकों से संघर्ष किया और अंततः अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया। यह संघर्ष हमें हमारी स्वतंत्रता के मूल्य की याद दिलाता है और हमें अपने राष्ट्र के लिए योगदान करने की प्रेरणा देता है।

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